बाजार में एयर इंडिया

आखिरकार वर्षों से घाटे में चल रही भारत सरकार की विमानन कंपनी एयर इंडिया का विनिवेश करने का सरकार ने मन बना ही लिया। उसने सौ फीसदी हिस्सेदारी बेचने का मन बना लिया है। इस बाबत निविदाएं आमंत्रित की गई हैं। एयर इंडिया को खरीदने के लिए प्रस्ताव सौंपने की अंतिम तारीख 17 मार्च तय कर दी गई और 31 मार्च तक इसके खरीदार के नाम की घोषणा कर दी जाएगी। हालांकि, सरकार ने दो साल पहले भी ऐसी कोशिश की थी, मगर कोशिश सिरे नहीं चढ़ सकी। सरकार तब 24 फीसदी हिस्सेदारी अपने पास रखना चाह रही थी। लेकिन अब उसने जहां सौ फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है, वहीं खरीद की शर्तों को आसान भी बनाया है। निसंदेह गले तक कर्ज में डूबी इस देश की दूसरी बड़ी विमानन कंपनी को चलाना सरकार को अब सिर्फ घाटे का सौदा नजर आ रहा है।। यही वजह है कि उसने अपने प्रतिष्ठित महाराज ब्रांड से मुक्त होने का मन बनाया है। भारतीय नागरिक उड्डयन नीति के अनुसार कोई भी विदेशी विमानन कंपनी भारत में किसी भी विमानन कंपनी में सिर्फ 49 फीसदी की ही खरीदारी कर सकती है। जिसका मतलब तय है कि कोई भारतीय ही एयर इंडिया को खरीद सकता है। अब सरकार ने इस बड़ी खरीद के लिए कई तरह की छूट भी दी हैं, जिसमें इसके कर्ज के हिस्से में भागीदारी करते हुए खरीदार को अब महज 23 हजार करोड़ रुपये के एयर इंडिया के कर्ज को चुकाना होगा। इसके अलावा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की निर्धारित अवधि में भी छूट दी गई है। इसकी वजह यह भी है कि अन्य विमानन कंपनियों के मुकाबले एयर इंडिया में कंपनियों का प्रतिशत अधिक है। हालांकि, संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ और चर्चित भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी इस विनिवेश को देश के हित में नहीं बता रहे हैं। निसंदेह, भारत के सार्वजनिक उपक्रमों में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार का जो आलम रहा है, एयर इंडिया की बिक्री योजना उसकी परिणति की ही कड़ी है जो कंपनियों केसंस्थागत पराभव की ओर इशारा करता है। आखिर क्या वजह थी कि भारत की प्रतिष्ठित विमानन कंपनी लगातार घाटे में डूबती चली गई? एयर इंडिया के इंडियन एयर लाइन्स में विलय के बाद ही घाटा बढ़ा। हवाई जहाजों का जो बड़ा बेड़ा खरीदा गया, उसने भी इस कंपनी की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया। कहीं न कहीं एयर इंडिया की। बदहाली के बीज इसके शीर्ष स्तर के कुप्रबंधन में छिपे हैं। नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप और मुफ्त सेवा के तमाम उपक्रम भी इसके पराभव के कारणों में शामिल रहे हैं। निसंदेह विमानन सेवा एक संवेदनशील विषय है और राष्ट्रीय सरोकारों से भी जुड़ा है। हम न भूलें कि कुवैत पर इराक के हमले के वक्त लाखों भारतीयों को सुरक्षित निकालकर भारत लाया गया था। हालांकि, अभी कहना कठिन है कि एयर इंडिया को इतनी जल्दी कोई बड़ा खरीदार मिल जायेगा। वजह एयर इंडिया का कर्ज चुकाना भी है और इसके घाटे को जल्दी से जल्दी मुनाफे में बदलना भी। एयर इंडिया का फ्लीट पुराना पड़ चुका है, उसे पटरी पर लाने के लिये नए एयर फ्लीट की भी जरूरत होगी, जिसके लिये नये निवेश की भी जरूरत होगी। यात्रियों की ग्रोथ बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा। नये खरीदार को मानसिक रूप से तैयार होना होगा कि उसे कुछ वर्ष घाटे को सहने का हौसला रखना होगा। कर्मचारियों से जुड़ी समस्याएं भी सामने होंगी। मगर, खरीदार के लिये विमानन क्षेत्र का एक बड़ा बाजार, अनुभवी पायलटों की टीम और इससे जुड़े समृद्ध संसाधन भी उपलब्ध होंगे। सरकार को राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए विनिवेश की प्रक्रिया को अंतिम रूप देना होगा।