हॉलैंड, जर्मनी तक पहुंची यहां के महिला समूह की चाय

चाय की बात निकले तो असम का नाम जुबां पर आता है, लेकिन यहां हम आपको छत्तीसगढ़ के बस्तर में पैदा हो रही हर्बल चाय के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी खुशबू सात समंदर पार जा पहुंची है। जी हां, बस्तर की हर्बल टी हॉलैंड और जर्मनी आदि देशों तक अपनी पैठ बना चुकी हैदेश की बात तो दूर, विदेश में भी इस हर्बल चाय की चुस्की लेने वाले हजारों लोग हैं। खास बात यह कि इसका उत्पादन बस्तर की आदिवासी महिलाओं के समूह- मां दंतेश्वरी हर्बल प्रोडक्ट महिला समूह द्वारा किया जा रहा है। इतना ही नहीं, 12 रोगों के लिए यह चाय रामबाण औषधि भी है। डब्ल्यूएचओ ने इसे प्रमाणित किया है। इस चाय की खेती ने सैकड़ों आदिवासी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है। आज उन्हें पाई-पाई को मोहताज नहीं होना पड़ता। कोंडागांव जिले के ग्राम चिखलकटी और आसपास के गांवों की करीब चार सौ आदिवासी महिलाएं इस समूह से जुड़ी हुई हैं। दशमति नेताम इसकी अध्यक्ष हैंवे बताती हैं कि करीब 16 साल पहले उन्होंने समूह की शुरुआत की थी। पहले दालचीनी और काली मिर्च उगाते थे। कुछ वर्षों बाद स्टीविया की भी खेती करने लगे। इससे आमदनी थोड़ी बढ़ गई। समूह की महिलाओं की संख्या भी वक्त के साथ बढ़ती गई। इसके बाद हर्बल चाय की शुरुआत हुई। विकोंरोजिया (अंग्रेजी नाम) की जडे, स्टीविया, लेमन ग्रास और काली मिचे चारों को सही अनुपात में मिलाकर हर्बल चाय तैयार करते हैं ।विकोंरोजिया मधुमेह और कैंसर में कारगर है। कहती हैं, डॉ. राजाराम त्रिपाठी का मार्गदर्शन मिला और उनकी मदद से पुणे स्थित टिश्यू कल्चर लैब से प्रशिक्षणप्राप्त कर एक पौधे से कई पौधे तैयार करने काहुनर सीखा। इस तरह हम आगे बढ़ते गए। दशमति बताती हैं कि इस हर्बल चाय की खासियत यह भी है कि इसे बनाते समय दूध और शक्कर की जरूरत नहीं पड़ती। स्टीविया से मिठास आ जाती है और लेमन ग्रास से खुशबू । गरम पानी में एक पैकेट हर्बल चाय डालते ही सुगंधित मीठी चाय तैयार हो जाती है। एक कप चाय की कीमत डेढ़ रुपये पड़ती है, यानी यह सस्ती और सेहतमंद दोनों है ।इस हर्बल चाय को वर्ष 2017- 18 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी प्रमाणित किया है। यह सर्दी, खांसी, बुखार, र, मधुमेह, सिरदर्द सहित 12 रोगों के लिए रामबाण औषधि है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऑनलाइन वेबसाइट वंडररूमडॉटकॉम के माध्यम से भीआदिवासी महिलाओं का यह समूह इस चाय की बिक्री करता है। इसकी कीमत प्रति यूरो के हिसाब निर्धारित है। विदेश में करीब 20 हजार ग्राहक बन चके हैं पर्व गणपति टॉi बस्तर की इस चाय को ब्रांड बनाने की राह दिखाई थी। दशमति ने बताया कि समूह कई औषधीय पौधे लगाता था, जिसकी खपत पहले स्थानीय स्तर पर ही होती थी। एक बार कलाम यहां के प्रवास पर थे। समूह की महिलाओं को उनसे मिलने का अवसर मिला। उन्होंने पूछा कि औषधियों का विक्रय किस तरह करती हैं। उन्होंने बताया कि बोरी पर रखकर । इस पर उन्हान सुझाव दिया कि पहल पटट कराए फिर उसका पकाजगकरें। इसमें ब्रांडिंग व पेटेंटिंग सलाहकार अपूर्वा कर। इसम ब्राडिग व पटाटग सलाहकार अपूवा त्रिपाठी ने मदद की। आज उनकी हर्बल चाय कोका अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल चुकी है।