महामारी में मस्ती

रसूखदार लोगों में यह भाव अक्सर देखा जाता है कि कानून उनके हाथ की कठपुतली है और वे जिस तरह चाहें, उसका इस्तेमाल अपने पक्ष में कर सकते हैं। इसका ताजा उदाहरण वधावन परिवार है, जो निषेधाज्ञा को धता बताते हुए गाड़ियों का काफिला लेकर मौज-मस्ती मनाने खंडाला से महाबलेश्वर की यात्रा पर निकल पड़ा। इस समय कोरोना विषाणु का संक्रमण रोकने के मकसद से पूरे देश में पूर्ण बंदी लागू है। लोगों के अपने घरों से निकलने पर रोक है। हर जगह निषेधाज्ञा लगी है, पांच से अधिक लोग एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकते, न सैरसपाटे के लिए जा सकते हैं। मगर महाराष्ट्र सरकार के प्रधान सचिव ने अपने लेटर हेड पर लिख कर वधावन परिवार को यात्रा की इजाजत दे दी। उस पत्र में उनके काफिले में शामिल गाड़ियों के नंबर दर्ज थे। इन गाड़ियों में वधावन परिवार के कुल तेईस लोग गए थे। प्रधान सचिव ने उनकी यात्रा की वजह जरूरी चिकित्सीय परामर्श बताया था। इस तरह गाड़ियां सारे पुलिस नाके पार करती हुई महाबलेश्वर तक निर्बाध पहुंच गई। पर जब प्रशासन को इसकी शिकायत मिली और जांच हुई तो पता चला कि यह परिवार चिकित्सीय कारणों से नहीं, सैरसपाटे, मौज-मस्ती के लिए घर से निकला था। इस पर स्वाभाविक ही महाराष्ट्र सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ रही है और वधावन परिवार के खिलाफ प्रशासन सक्रिय हो गया है। वधावन बंधु डीएचएफएल के प्रमोटर हैं और येस बैंक में हुए धनशोधन मामले में उन पर भी गंभीर आरोप हैं। उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट हैं। पर पिछले महीने जब उन्हें अदालत के समक्ष हाजिर होना था, तब उन्होंने महामारी का बहाना बना कर हाजिर होने से मना कर दिया था। विचित्र है कि अब उन्हें महामारी का कोई डर नहीं और वे अपने परिवार के साथ समूह में मौज-मस्ती को निकल पड़े। उनकी मदद करने के आरोप में प्रधान सचिव को तत्काल प्रभाव से लंबी छुट्टी पर भेज दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआइ सहित दूसरे अन्य महकमे सक्रिय हो गए हैं। सीबीआइ ने सतारा पुलिस को आदेश दिया है कि बिना उसके आदेश के वधावन बंधुओं को रिहा न किया जाए। हालांकि वधावन परिवार को अलग-थलगरख दिया गया है और उन पर कोरोना विषाणु के प्रभावों को लेकर निगरानी रखी जा रही है। पर इस घटना ने सरकारों के कोरोना महामारी से लड़ने के प्रयासों पर प्रश्नचिह्न तो लगा ही दिया है। जब किसी राज्य के प्रधान सचिव को बंदी के उद्देश्यों की परवाह नहीं है, तो भला दूसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है ! इस महामारी से महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित है और वहां की सरकार इसके संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास करती देखी जा रही है। मगर उसके प्रधान सचिव अपने लेटर हेड पर पत्र लिख कर एक आरोपी को मौज-मस्ती की छूट दे देते हैं, तो उनकी मंशा पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। वित्तीय गड़बड़ियां करने वाले कुछ लोग किस तरह चुपके से देश से पलायन कर गए हैं, यह प्रधान सचिव से कोई छिपी बात नहीं थी। ऐसे में यह आशंका निर्मूल नहीं है कि बंदी के दौरान पत्र लिख कर वधावन परिवार को लंबी दूरी की यात्रा करने की इजाजत देने के पीछे कोई साजिश भी हो सकती है। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को सक्रियता दिखाते हुए असल कारणों को उजागर करना चाहिए।